सैलाब एक उमड़ आता है दर्द का,
नैनों से मोती बरसते रहे ।
वह ना समझ पाए मेरी इस टिस को,
ना मैं उन्हें कुछ कह पाउ।
बस एक कोना देदो अपने दिल में,
सिमट के रहने दो मुझे उधर।
बुलंद है आज भी यह आवाज़,
कुछ दिन चुप रहने दो मुझे।
महीने के वह दिन,
आँसू बहने दो मेरे।
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