Friday 5 July 2013

शिवालय


जब देखती हु गोरैया को तो पाती हु तुझे।
 जब सुनती हु हर चिड़िया को,
जब रंग निहारती हु, तो लगता है
तू समाया है उसमें।
जब देखती हु उत्तराखंड को,
तो तेरा तांडव दिखता है।

जब देखती हु शीतल नदी को
तो तेरा प्रेम दिखता है।
जीने का मकसद भी देता है
और मरने का भी तू।

हिमाल बुलाये मुझे बार बार
कभी बर्फ के बीच
कभी बादलों की छाओ मैं
कभी अपनी खिसकती मिटटी मैं
कभी अपनी शान सी ऊंचाई मैं।
कभी दिखता है,
हिमाल हरियाली के बीच,
कभी सिर्फ पत्थरों मैं,
पर तू ही है जिसने
हिमाल है बनाया
और हम ही है जो बिगाड़ते है इसे।

हिमाल बुलाये मुझे बार बार,
मिलना है इससे काफी बार।
वक़्त है कम पर देखने है हिमाल के कई रूप कई रंग।
और कुछ देखूं न देखूं,
पर मिलूंगी तुझसे मैं कई बार।

मन करता है
तुझे समेट के ले जाऊ
अपने साथ अपनी नगरी।
पर वह कैसा प्यार जिसमें तू खुश न हो।
आउंगी तुझसे मिलने मैं दोबारा,
और कई बार,
इतना पता है मुझे, मेरे हिमाल।






No comments: